Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ २४ सिरिजिणेसरसूरिविरइओ मुहचंदमसंदिद्धं सुंदरचंदियपवाहपाणकए । जीए चओरमिहणं व आगयं सहइ सिहिणजुअं ॥२९५॥ रससरियाए तीए तिवलितरंगाए सिहिणचक्काए । रमणपुलिणम्मि कीलं करेइ अज्ज वि सिसू मयणो ॥२९६।। विसमेसुमहीनाहस्स विजयजत्ताए कयनिवासस्स । रइपीइगुड्डरा इव उरोरुहा जीए रेहति ॥२९७॥ भरिउव्वरियं विहिणो जं अमयं तरुणिसिहिणकलसाओ । तत्तो मन्ने घडिओ असेसजणवल्लहो चंदो ॥२९८॥ वयणारविंदनीसंदमाणलावन्नबिंदुपंति व्य । मोत्तियमाला कंठम्मि तीए परिघोलिरी सहइ ॥२९९॥ निउणविहिकमनिम्मियकवोललायण्णतच्छणोच्छलिया । तिस्सा मुहाओ जाया बाहिरछल्लि व्व ससिरेहा ॥३०॥ अण्ण(ण्णं) च्चि(चि)य(?) ससिवि विहिणा से निम्मियं तया वयणं । जस्स न कीत्ती[?हायइ] बहुलविसाहाहि दियसेहिं ॥३०॥ पडिबिंबिओ जीए कवोलमंडलेसुं निसाए निसिनाहो । न्हाणत्थं पिव तम्मुहजोन्हाए कलंकमलकलुसो ॥३०२॥ तुह मुहसारिच्छं न लहइ त्ति संपुण्णमंडलो विहिणा । अन्नमयं व घडेउं पुणो वि खंडिज्जइ मयंको ॥३०३।। अइमुरहिसासपरिभमिरभमरपरिबिंबचुंबियकवोलं । वयणं चलंतमयणाहिपत्तकोऊहलं जणइ ॥३०४॥ अहरच्छलेण दिन्ना विहिणा सिंदूररायमुद्द च । वयणे बिंबनिहा से लायन्नं रक्खमाणेण ॥३०५।। एईए [? ] अहरहयाणि मंदाइं लज्जमाणाइं । बिंबफलाई उब्बंधणं व वल्लोसु विरयंति ॥३०६॥ वयणेण इमीए विणिज्जियाइं जं पंकयाइं वियसंति । तं जलसंसग्गकयं मूढत्तं फुरइ ताण धुवं ॥३०७॥ नयणाई सामलीए घोलावियमहुरमंदताराइं । कस्स न हरंति हिययं गेयाई व कन्नलग्गाई ? ॥३०८॥ नयणनईसु य जिस्सा वाह(?हो) इव पविसिऊण पंचसरो । भूजुअलमिसेण धणु तडम्मि मोत्तूण मज्जेइ ॥३०९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122