Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 40
________________ - : गाहारयणकोसो अन्नोन्नरायरसियं आसन्नपओहरं गुणविहणं । धर्ट सहाववंकं वेसाहिययं सुरधणु व्ध ॥२८३॥ अहिणि व्व कुडिलगमणे !, रोरहरे दीविय व्व निन्नेहे ! । सुकइ व्व अत्थलुद्धे ! वेसे ! दिहा सि, वच्चामो ॥२८४॥ जह लडहत्तं जह सा विअड्ढिमा पणवहूण जह विणओ । तह जइ पिम्मं पि हवेज्ज को सलाहिज्ज ता अमयं ? ॥२८५॥ निम्मलपउत्तहारा बहुलोहा पुलइएण अंगेण । खग्गलइय व्य वेसा कोसेण विणा न संवहइ ॥२८६॥ सरसा निहसणसारा गंधड्ढा बहुभुयंगपरिमिलिया । चंदणलय व वेसा भण कस्स न वल्लहा होई ? ॥२८७॥ अत्थत्थेप(१च्छेए)ण मुहाई होति विसउम्भवाई सेसाणं । ताई चिय उण वेसाण, मूलमत्थस्स अच्छरियं ॥२८८॥ २५. अथ सर्वाङ्गस्त्रीवर्णनप्रक्रमः मरगयमंजीरमऊहमिलियनहरयणकंतिचरणजुयं । बालारुणतिमिराणं समए [? ... ... .... .... .... ॥२८९।। .... .... .... ॥२९०॥ .... .... .... .... ]विहिणो लत्ताइरंजियं तस्स । हिययस्स व विदू (१) निवडियरोमावली जाया ॥२९१॥ रूवेण से न सरिसी अन्ना अस्थि त्ति दप्पियमणेण । मज्झम्मि रोमराई रेह व्व कया पयावइणा ॥२९॥ तद्दियसकयाहाया जह जह सिहिणो विणिति बालाए । तह तह लद्धावास व्य वम्महो हिययमाविसइ ॥२९३॥ पीणा घणा सुदूरं समुण्णया महवियंभियच्छाया । मेहा थणा य से निव्वर्विति तण्हाउरं हिययं ॥२९४॥ १. अत्र कोष्ठकमध्यगतः पाठो नोपलब्धः प्रतिलेखकेन, अतोऽत्र स्थाने “यथाप्रति" इति प्रती टिप्पणी उपलभ्यते ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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