Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 39
________________ २२ सिरिजिणे सरसूरिविरइभ दण तं जुयाणं परियणमज्झम्मि पोढमहिलाए । उत्फुल्लदलं कमलं करेण मउलावियं कोस ? ॥ २७० ॥ अच्छी पई, सिहोहिं देवरो, गुरुअणो निअंबेण । तिनि विरे वेहू तं जाणह केण कज्जेण ? ॥२७१॥ हिययं रोगिणं (ण) पायपहारं सिरेण इच्छतो । पहओ न पिओ माणसिणीए थोरंसुयं रुयणं ॥ २७२ ॥ दण सामिसाल कंठं गहिऊण निब्भरं रुन्नं । पत्ते वियालसमए ता कीस जुयज्जुया सिज्जा ? || २७३ || तूण वरगयंद वाहो वाहाण मज्झयारम्मि । धुयइ सरं पियइ जलं तं जाणह केण कज्जेणं ? ॥ २७४ ॥ अहिणव पेमसमागम जोन्वणरिद्धी वसंतमासम्मि । पवसंतस्स य पिउणो भण कीस पलोइयं सीसं १ || २७५ ॥ fast वाहेण मओ मरण वाहस्स वंठियं कंडे । छिन्नं मयस्स सीसं तह विमओ तं तणं चरइ ॥ २७६ ॥ अणिय पयारिहरिसंकराणसदो ण [?] पलायंति । ताहिं चिय गरुइगमणे ! हा मुद्धे ! कत्थ दीसिहिसि ? || २७७ || जलजायजायवाहणगईए हरवहकलंकनयणीए । करनाससी ससघणत्थणीए मह विहियं हिययं ॥ २७८ ॥ * २४. अथ वेश्याप्रक्रमः दूरागयत आयरपडिच्छियं पायमूलपडियं पि उज्झंति फालिऊणं वेसा लेहं व गहिअत्थं ॥ २७९ ॥ लोहमयी गुणमुका रत्तं दण जीवियं हरइ । सिलिय व वेसा जं पावइ तं विणासेइ ॥ २८० ॥ सामन्नसुंदरीणं विभममावहइ अविणओ चेव । धूमु च्चिय पज्जलियाण बहुमओ सुरहिदारूणं ॥ २८१॥ कयकठिणकोसपाणा लोहपसारियसरीरसंठाणा | सुंदरसिंगसोहा खंडइ वेसाऽसिलट्ठि व्व ॥ २८२॥ १. 'वहू न याणिमो केण” इति प्रतौ पाठान्तरम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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