Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 37
________________ सिरिजणेसरसूरिविरइओ अवरेहिं वि जं सिज्झइ तम्मि कए कि परस्स उवयरियं । तरणिम्मि दलियतिमिरे उवयरइ जणस्स किं दीवो ? ॥२४६॥ उवयरिएसु वि केसु वि अयसो विप्फुरइ सजणाणं पि । मलिणत्तणं पि त(?ज)लसोहणेण विमलाण वि कराणं ॥२४७॥ देवघराण वि काण व वड्ढताणं कमेण संकोओ। केसि पि सु(?पु )णो जायइ वित्थारो पायवाण व्व ॥२४८॥ लहुएण वि गुरुआलंबणेण अहियं लहंति अपसंसं । नहभंगेण वि पडिमाओ देवयाणं अपुव्वा( ?ज्जा )ओ ॥२४९॥ पयमुन्नयमहिरोहंति केवि दुनयपहेण वच्चंता । मयगहिलविब्भमाणं गयाण पवियंभए अग्यो ॥२५०॥ गरुयायंति अणेगे वसणेसु अणाउला पुणो विरला । बहुसो संति महग्या जलणे कणयस्स पुण पुट्टी( ?सुद्धी ) ॥२५१॥ अवलंबियं तणाई विहलं धारंति अहव तुटुंति । अवलंबिय जे न हु तणसमा वि किं ताण उण भणिमो ? ॥२५२॥ अवियारिऊण कज्जं सहस च्चिय जे नरा पयति । डझंति ते वराया दीवसिहाए पयंगो व्व ॥२५३॥ अवरगुणेणं जाणं मडप्फरो ताण नाम को गव्यो ?। वाउवसारूढनहंगणाण धूलीण को महिमा ? ॥२५४॥ * २२. अथ छेकप्रक्रमः वंकभणियाइं कत्तो ? कत्तो अद्धच्छिपिच्छियव्वाइं ? । ऊससियं पि मुणिज्जह छइल्लजणसंकुले गामे ॥२५५॥ लीलावलोयणेण वि मुणंति जे हिययकज्जपरमत्थं । ते कारिमोवयारेहिं कह णु छइल्ला छलिज्जति ? ॥२५६॥ सहस त्ति जं न दिट्ठो, सरहसचित्तण जं न आलत्तो । उवयारो जं न कओ तं चिय कलियं छइल्लेहिं ॥२५७॥ १. आ अवलंबणेण प्रतिपाठः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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