Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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१८
सिरिजिणेसर सूरिविरहओ
arrमहिसीओ जाया सव्व च्चिय पत्थिवा न संदेहो । rore खलाहिलासो कह ताण मणम्मि विष्फुरइ ? ॥२१८॥ दण तुज्झ उदयं पुव्वावर - दक्खिणोत्तरदिसासु । इय मच्छरेण नरवर ! पेच्छ रवी रायमुव्वह ॥ २१९ ॥ संज्ञावसरे संज्ञावहूए उवरिं भमाडिऊण रविं । खिप्पर आरतियदीवओ व्व तुह रायरायस्स ॥ २२० ॥ जस्स य समरे अरिकुंभिपहरसंकंतमोतिओ खग्गो । अरिजीअलुद्धजमजीह दंतपंतीओ उवहसइ ॥ २२१ ॥ अरिकुंभिकुंभनिन्भेयपूररुहिरच्छडारुणच्छाओ । परिकुवियजमकडक्खो व्व जस्स खग्गो रणे सह || २२२ ॥ अलिकुलकुवलयकज्जलतमालनीलम्मि जस्स धारहरे । सइ रणसराओ नासंति रायहंसा पवरपक्खा ||२२३|| जस्स करे करवालो छज्जइ ताविच्छगुच्छसच्छाहो । समरम्मि हढायड्ढयजयलच्छीवेणिदंडो व्व ॥ २२४॥ अरिकामिणीण कुंकुम- कत्थूरी - कज्जलाई अंगे । जस्स करवालधाराजलेण सहस त्ति धोआई ॥२२५॥ जस्स असिभिण्णअरिकरिकुंभत्थलगलियमोत्तियगणेण । बीएण व जणि समरभूमिपडिएण कित्तिलया : २२६ ॥ नहयलविसालफलए ससहरखडियाए तारसारीहिं । जस्स पयावी कित्ती य दो वि 'दीवंति अविरामं ॥ २२७॥ मेहं व सजलधारं रणगयणसमुण्णयं तमालनिहं । दण जस्स खग्गं पलाइयं रायहंसेहिं ॥ २२८॥ करिकुंभदलण संसत्तमोतिओ जस्स रणभरे खग्गो | सत्तूण सग्गमग्गो व्व सहइ नक्खत्तसंजुत्तो ॥ २२९ ॥ समरम्मि जस्स खग्गो विभिण्णरिउकुंभिकुंभरुहिरुल्लो | रेहड़ जयसिरिचलणालत्तयपयपंतिरत्तो व्व ॥ २३०॥ जस्स करवालदंडेण खंडिआ रेहए रणमहीए । अरिकुंजरदंता अंकुर व्व नज्जैति जसतरुणो ॥ २३१||
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१ " क्रीडन्ति " इति प्रतौ टिप्पणी ॥
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