Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 33
________________ सिरिजिणेसरसूरिविरइओ महिऊण महाजलहिं महमहणो तत्थ सुयइ वीसत्थो। एयं नीइविरुद्धं, छज्जइ सव्वं समत्थाणं ॥१८२॥ उम्मूलेइ न पवणो तिणाई किल उण्णओ असाराई । भंजेइ महल्लतरू, गरुया गरुए विरोहंति ॥१८३॥ धीरो अरिकरिकुंभयडपाडणोच्छलियमोत्तियच्छरिओ । रेहइ रणम्मि जयसिरिसियक्खएहिं [व] अहिसित्तो ॥१८४॥ समरे धारागोयर मुचंति वि(वे)रिमंडलग्गेण(?) । त(तं) तम्मि बला खलु निवसिरीए लच्छीए घिप्पंति ॥१८५।। सच्चं कलानिहि च्चिय चंदो तेयम्मि जो पणम्मि । पवसियतवणस्स वि गयणचक्कमक्कमइ पाएहिं ॥१८६॥ पइणो सुलहाई धणाई दिति, पत्ती य दिति पुण पाणे । गरुयत्तं तह वि पईण न उण पत्तीण, अच्छरियं ॥१८७॥ सुहडाण समरवज्जंततूरवररवणधणजलासित्तो । पुलयच्छलेण उच्छाहमहिरुहो मुयइ किसलाई ॥१८८॥ सत्तूण पायवीढे लुढंति माणसिणो वि जं कह वि । तं अब्भत्थिति महिं विवरं पायालगमणत्थं ॥१८९॥ हियइच्छिअमलहंतो पंजरसउणु व्व धीरववसाओ । कोससयसंपुड[?... ]निरुद्धपसरो तडप्फडइ ॥१९०॥ २०. अथ राजवर्णकप्रक्रमः उव्वहसि कीस गव्यं एत्थ जए गयवई अहं एको ?। तुह वेरियाण नरवइ ! महिलासच्चा(?त्था) वि गयवइणो ॥१९१॥ नूणं धणुम्मि तुह पहु ! संकमइ विवक्खजीवियं समरे । इहरा तम्मि सजीवे कह रिउणो होति अज्जीवा ? ॥१९२।। संपुण्णकोसदंडं जलदुग्गगयं पि द(?ढ)लइ कमलवणं । दिदृम्मि जम्मि, कह सो सूरो ? मा भुवणमक्कमउ ॥१९३॥ बहुलक्खएण बहुसो महापसाएण तुज्झ नरनाह !। पणइसमूहो चंदो व्व वंदणिज्जो जए जाओ ॥१९४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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