Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 32
________________ गाहारयणकोसो सो के विझविज्जइ वीरपयावानलो तिणिक्खतो ? | उपपत्तिकारणं जस्स खग्गधाराजलो च्चेय ॥ १६७॥ arrat aort वरप्पयाणेण साहसुक्करिसो | संते व करसमूहे एक्क्कं जो सिरं लुयए ॥१६८॥ पहरा सुहडो पुलयसणाहाइ खग्गलट्ठीए । जाय मउलिअनयणो दइआइ व कंठलग्गाए ॥१६९ ॥ इक्कत्तो रुयइ पिया अण्णत्तो समरतूरनिग्घोसो । नेहेण रणरसेण य भडस्स दोलाइयं हिययं ॥ १७० ॥ अज्ज वि विहरम्मि पहू अज्ज वि पहरंति वइरिसंघाया । विज्झत्था जयसिरी वि रे जीव ! मा वच्च ॥ १७१ ॥ तं नत्थि जं न सिज्झइ ववसायसमुज्जयस्स धीरस्स । जं सीसमेत्तसेसो राहू ससि - दिणयरे गलइ ॥ १७२॥ अघडियपरावलंबा जह जह गरुयत्तणे न विहति । तह तह गरुआण हवंति बद्धमूलाओ कित्तीओ ॥ १७३॥ दिग्गयकओलवियलियमयपंकामोयवासियमणस्स । भसलस्स कण्णतालाहयस्स मरणं पि रमणिज्जं ॥१७४॥ खगम्मि निवासो जयसिरीए, समरम्मि होइ सा हत्थे । safe affaक्क धीरा विसूरिति ॥ १७५॥ विरुम्मुहा वि गरुया उवयारी होंति सयललोयस्स । कुम्मेण निययपि पि भुवणं समुद्धरियं ॥ १७६॥ चित्तिन्नो वि तुलागओ वि मित्तो तहा वि न हु मुक्को । को हरिउं तस्स नहंगणस्स गंभीरिमं तरइ ? ॥ १७७॥ सन्भावं पहुहियए, जीयं सग्गे, जसं जए सयले । afar रणे सीसं कयकज्जो नच्चिओ सुहडो ॥ १७८ ॥ कुलमुद्धरंति एगे वडबीयकणकुरेण सारिच्छा । अन्ने वालयसरिसा जाया मूलं विणासंति ॥ ११७९॥ कह नाम सहिज्जइ कायरेण समुहिंतगयघडावीढे । गरुयगयचलणचंपिया करोडिकडुओ कडक्कारो १ ॥ १८० ॥ तुंगत्तणं गयंदे संगरसारणं च केसरिणो । संगमरिमा तुंगमा य सरभे समप्पंति || १८१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only १५ www.jainelibrary.org

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