Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 34
________________ गाहारयणकोलो तुह रिउणी नाह ! सुहत्थिणो वि भद्दत्तणं कह वरंतु ? | जाण दुहच्चे गई एक्के मंदा, मया अण्णे ॥ २०४ ॥ बहुसोहया (ग्गा) ओ अविहवाओ वहंति तुज्झ वेरीण | अंतेउरीओ [ ] नहु नहु नरनाह ! नयरीओ || २०५ || हरहास- हंस-हारिंदु-कुंद - बलहद्द - संखधवलेण । तुज्झ जसेण रिऊणं साहसु कह मयलियं वयणं १ ॥ २०६ ॥ कमलानिलओ वि तुमं नाह ! न दोसायरो सि सुकईवि । न य अत्थलईओ जं तेण जए विम्हयं कुणसि ॥२०७॥ उद्दामपियालवणी सरलत्तणजणियजणमणाणंदी | सहरकंदर विसमो नरनाह ! तुमं हिमगिरि व्व ॥२०८ || afra fa fra लच्छी, थिरा वि भमिरी तए क्या कित्ती । अह मुयइ च्चिय तुह दंसणेण महिलायणो पयई ॥ २०९ ॥ समरम्मि तुज्झ खग्गे विमलत्तणएण झत्ति संकंता । पडिमा मिसेण सयला नज्जइ सरणागया रिउणो ॥ २९० ॥ पाणिग्गहिया व चिरं असियट्ठी तुज्झ नाह ! अइचवला । अणुराय पुलइयंगी रिऊण कंठग्गहं कुणइ ॥२११॥ किं नाह ! इमं जुत्तं चउरो वण्णाइ पालयंतस्स । जं तुह जसेण सयला वि एकवण्णा कया पुहवी १ ॥ २१२ ॥ 'लच्छीए गाढमालिंगिओ त्ति'इय चिंतिऊण कित्तीए । ईसाउरेव पेच्छ नरिंदभुवणे परिभमइ || || २१३॥ रिउरमणी आणण काणणेसु विलसंतपत्तवल्लीओ । aterओ खयं तरवारिवारिणा जस्स अच्छरियं ॥ २१४॥ समरम्मि जो ः समग्गे विवक्खवग्गे पलायमाणम्मि । सम्मुहमप्पाणं चिय पेच्छ करवाल संकेतं ||२१५॥ पण देव ! दितो बहुसो लक्खाई उत्तणो कीस ? | पक्खिाण व तुह दिति गयवरा रयणकोडीओ ॥ २१६ ॥ जाहे च्चिय तं चलणे णयाण उवरिं करं पसारेसि । लच्छी भुट्टिया वो ताहे च्चिय तेसु संकमइ ॥ २१७॥ १. एतदनन्तरं 'गाथा शत २००" इति प्रतौ । ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only " १७ www.jainelibrary.org

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