Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 30
________________ गाहारयणकोसो अच्छउ का वि अपुव्वा रिद्धी ताराहिवस्स रिद्धीसु । जा का वि पुराणा तारयाण रिद्धी हया सा वि ॥१४४॥ मुहिए सुहियाइं रविम्मि, दुक्खिए दुक्खियाई कमलाई। तह वि हु न तेण ताणं अवयरिओ पंकयकलंको ॥१४५॥ जह जह पावंति पयं उन्नयमुन्नययरं दिणयरु व्व । लहूईभवंति संतावयंति तह तह दढं केई ॥१४६॥ तारावइणा जं तारयाण रिद्धेण निहणिया रिद्धी । सयलकलाठाणस्स वि तेणं चिय झिज्झए लच्छी ॥१४७।। परिवाराणं सुयणत्तणं पि पिसुणे पहुम्मि न हु किं पि। पडिकूलम्मि रविसुए सुहा वि अवरे गहा विहला ॥१४८॥ महुमासवासराणं निडालसंजणियसेयबिंदणं । काण वि परिवुढिमहीयलस्स संतावमावहइ ' ॥१४९॥ १७. अथ कृपणप्रक्रमः अकयव्वओ न सोहइ विहवो विहवो व्य अंगणानिवहो । कत्थ वि अपत्तभोगो सुवण्णतारुण्णओ जाय(?भव)इ ॥१५०॥ किं वंसेण गुणेण य ? किंवा कोडीए? तुज्झ रे चाव !। जायंति जस्स पुरओ मग्गणया मुकसिक्कारा ॥१५१॥ कसिणं काऊण मुह, पच्छा रत्त मुहेण होऊणं । दिग्णं फलं पलासेण तं पि सउणेहिं परिचत्तं ॥१५२॥ लोहमयस्स वि मलिणस्स गाढमुहिस्स कोसनिरयस्स । किवणस्स किवाणस्स य आयारेणेव भिण्णत्तं ॥१५३॥ अंधारिऊण वयणं दीहं रसिऊण मामिखत्थेहि (१)। पउरं पि कहव दिण्णं जलएण जलं अलं तेण ॥१५४॥ १. प्रस्तुतसंवादिते इमे गाथे प्रती टिप्पणीरूपेण विद्यते "परपत्थणापवन्नं मा जणणि ! जणेसि एरिसं पुत्तं । उभरे वि मा धरिज्जसु पत्थणभंगो कओ जेण ॥१॥ मोणं कालविलंबो उच्चट्ठिी परम्सुहं वयणं । भिउडी अंतल्लावो नकारा छव्विहा हुंति ॥२॥" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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