Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ सिरिजिणेसरसूरिविरइओ करिणो हरिनहरविदारियस्स दीसंति मुत्तिया कुंभे । अहव किवणाण मरणे पयड च्चिय होंति भंडारा ॥१५५।। १८. अथ दारिद्रयप्रक्रमः दीसंति जोयसिद्धा, अंजणसिद्धा तहेव दीसंति । दालिद्द जोयसिद्धा पासे वि ठिया न दीसंति ॥१५६॥ महुरोल्लावसलूणो ललियपओ रूवजाइपरिसुद्धो । अ(त)ह वि न अग्घइ अधणो पच्चक्खकईण कव्वं व ॥१५७॥ उप्पज्जति तर्हि चिय, वियसंति तहि, तहिं विलिज्जति । पुण्णसरे कमलाइं व मणोरहा रोरहिययम्मि ॥१५८॥ संता वि गुणविसेसा नराण पयडा हवंति ता कत्तो । जाताण दप्पणाण व कओ ण भूईए सक्कारो ? ॥१५९॥ जे जे गुणिणो जे जे य माणिणो जे विद्वत्तविन्नाणा । दालिद्द ! रे वियक्खण ! ताण तुमं साणुराओ सि ॥१६॥ संतवइ गसइ सव्वं जइ वि [?] धूमेण पढममंधेइ । उअरभरणस्थिणो तह वि निच्चमगणि अणुसरंति ॥१६॥ संता वि गुणा गुणवंतयाण दालिद्दतमभरक्कंता । अत्थोज्जोएण विणा पयडा वि न पायडा होति ॥१६२॥ अप्पाणं चिय दुभरं जाण जए किं व तेहिं जाएहिं ? । मुसमत्था वि [१य] न परोवयारिणी ते वि न कि पि ॥१६३।। लच्छीकरकमलवियासरेणुपूरिज्जमाणनयणेहिं । दीसंति नेय रोरा पुरओ वि ठिया धणड्ढेहिं ॥१६४॥ हरइ परिहीणविहवस्स नूण नियपणइणो वि अप्पाणं । सव्वंगमसंपुण्णस्स घडइ न हु जामिणी ससिणो ॥१६५॥ १९. अथ स्थैर्य-धैर्यादिगुणाः धोराण रमह घुसिणारुणम्मि न तहा पियाथणुच्छंगे । दिट्ठी रिउगयकुंभत्थलम्मि जह बहलसिंदूरे ॥१६६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122