Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 27
________________ सिरिजिणेसरसूरिविरइओ मलिणायारं दळूण मंडलो भसउ तस्स न हु दोसो। दुट्ठखलो अपरोक्खे विमलसहावाण वि भसेइ ॥१०६॥ वसइ जहिं चेव खलो पोसिज्जतो वि नेहदाणेण । तं चेव आलयं दीवओ व्व अचिरेण मइलेइ ॥१०७॥ अकुलीणो दोमुहओ ता महुरो भोयणं मुहे जाव । मुरओ व्व खलो जिन्नम्मि भोयणे विरसमारसइ ॥१०८॥ निद्धम्मो गुणरहिओ बाण(? चाव)विमुक्को य लोहसंभूओ । विधइ जणस्स हिययं पिसुणो बाण व्व भग्गंतो ॥१०९॥ न सहइ अब्भत्थणियं, असइ गयाणं पि पिट्रिमंसाई। दट्टण भासुरमुहं खलसीहं को न बीहेइ ? ॥११०॥ खलसंगे परिचत्ते पेच्छह तेल्लेण जं फलं पत्तं । मयणाहिसुरहिवासं पहुसीसं पावियं तेण ॥१११॥ होही खलु त्ति कलिऊण णियमणे मामि जंतदियएहिं । पत्तेहिं नवरि मुक्को फलिओ वि तिलो अव(? वे)क्खाए ॥११२॥ सो सदो, तं धवलत्तणं च, रयणायरम्मि उप्पत्ती । संखस्स हिययकुडिलत्तणेण सव्वं पि पन्भर्ट ॥११३॥ मेहा इव दोजीहा पयं समासाइऊण अइकलुसा । सच्छंदगमणसीला सयलं पि जणं कयत्थति ॥१४॥ सुयणो मुहा किलम्मइ, हरइ खलो ज्जेव नवर पहुहिययं । तरुणो फलाइ गहिउं तरह कई, न उण पंचमुहो ॥११५॥ १३. अथ सुस्वामिप्रक्रमः लहुवित्तस्स वि पहुणो गरुया लीयंति सुद्धहिययस्स । मडहे वि दप्पणे संकमंति गरुआ वि गयवइणो ॥११६॥ तेयस्सीण पसाओ लहू वि वियडं घडेइ महिमाणं । एक्केण वि रविकिरणेण गयणमक्कमइ हरिणको ॥११७॥ पगइखलेसु पि पियंवएस पहुणो वहंति परिओसं ।। कुडिलहिययस्स संखस्स हरइ हिययं सरो मुहरो ॥११८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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