Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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गाहारयणकोसो
सम्भावखलाण विकुणइ किं पि सुयणत्तणं सुयणसंगो । झीणस्स विकज्जलमीसि घडइ णयणस्स लायणं ॥ ९३ ॥ सच्चरियनिम्मलाणं अलिअपराण वि सिरीओ वडूति । सच्छिदाणं मुत्ताण रायवच्छत्थलारोहो ॥९४॥ किं इत्तिएण गणगणस्स गरुअत्तणं समोसरइ ? | अ ( ? )ज्जहिययस्स न जित्तितेएण सरिसाइयं तेण || ९५||
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१२. अथ दुर्जनप्रक्रमः
सुणो तुसारसरिसो ताविज्जंतो विलाइ, न हु जलइ । इरो दीवसरिस कयनेहो जलइ अहिअरं ॥९६॥ सुणत्तणं न केण वि अंतोमलिणाण तीरए काउं । सीसे वतस्स वि हरस्स वंको च्चिय मयंको ॥९७॥ पुरिसा जे गुणरहिया, कुलेण गव्वं वर्हति ते मूढा । सुपणं पिधणू गुणरहिअं भणह किं कुणइ १ ॥ ९८ ॥ गुरुआ वि जेसु महा संकंता दप्पणेसु दीसंति । जुत्तमिणं जं दिज्जइ जणेण छारं मुहे तस्स ॥९९॥ पुरिसाण कुलीणाण वि न कुलं विणयस्स कारणं होई । चंदा मय- लच्छि सहोयरं पि मारेइ किं न विसं १ ॥ १०० ॥ जह कणयं तह परिमाणपत्थरं वे वि तुलइ नाराओ । अवा निरक्खराणं गुण-दोसवियारणा कत्तो १ ॥ १०१ ॥ दोमुह ! निरक्खर [ ? य ] ! लोहमइय ! नाराय ! कित्तियं भणिमो । गुंजाहिं समं कणयं तुलंत न गओऽसि पायालं ॥ १०२ ॥ विद्दविगुणो दो सेक्कपायडो नेहखवणतचिल्लो । दीवो व्व खलो आसन्नसंठिओ कं न मइलेइ १ ॥ १०३॥ सज्जणसंगेण वि दुज्जणस्स न हु कलुसिमा समोसरइ | ससिमंडलमज्झरिट्ठिओ वि कसिणो च्चिय कुरंगो ॥ १०४ ॥
सो वि [?] न सुयण ! तुज्झ घडंतस्स किं पि उव्वरिओ । मन्ने दोसमओ च्चिय तेण जए दुज्जणो घडिओ ॥ १०५ ॥
१ " ईषत् " इति प्रतौ टिप्पणी । मीसि यस्स घडइ प्रतिपाठः ।
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