Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ गाहारयणकोसो जत्थ मणिभवभित्तीसु पिच्छितुं अत्तणो वि परिविवं । पडिजुवइसंकिरीओ पिएमु कुप्पंति मुद्धाओ ॥६६॥ जत्थऽच्छफलिहभूमी(?मिसु) सालत्तयतरुणिचरणपडिबिंबं । चुवंति मुदभसला जलविलसिरकमलभंतीए ॥६७॥ जत्थ अनीइपराइं खेत्ताई चेव न उण सप्पुरिसा । दीसंति दियवर च्चिय कुसाऽऽसणग्गहणतल्लिच्छा ॥६॥ विलयाउलाई वित्थिनपत्तपुन्नाई पवरसालाई । जत्थ भवणाई मज्झे, वणाई बाहिं विरायंति ॥६९॥ नीलमणिकुट्टिमे जत्थ नववहू पिच्छिऊण संकंतं । समुहं तग्गहणत्यं हत्थं कमलब्भमा खिवइ ॥७०॥ घरसिरपमुत्तकामिणिकवोलसंकंतससिकलावलयं । इंसेहि अहिलसिज्जइ मुणालसद्धालुएहिं जहि ॥७॥ ११. अथ सुजनप्रक्रमः इच्छंति न नेहलवं, सकज्जलग्गा न होति मणयं पि । अमुणियदसाविसेसा सुयणा रयणप्पईव व्व ॥७२॥ छोइल्लो पियइ तमं, तं च [१३] उव्वमइ कज्जलमिसेण । अन्ने वि सुइसहावा हियए कलुसं न हु धरंति ॥७३॥ दढरोसकलुसिअस्स वि सुअणस्स मुहाओ विप्पियं कत्तो । राहुमुइम्मि वि ससिणो किरणा अमयं चिय मुयंति ॥७४॥ पिसुणो अइदित्तग्गी नेहसहस्साई झत्ति जो जरइ । सुयणो उण मंदग्गी एक्कं नेहं न जो जरइ ॥७५॥ विमलेण वि कह उवमा एक्कसरूवस्स सुयणहिययस्स। फलिहोवलेण कीरइ आसयवसभिन्नरूवेण ? ॥७६॥ अभणंताण वि नज्जइ परिणामं सुपुरिसाण चरिएहिं । किं जपंति मणीओ जेण सहस्सेहिं धिप्पंति ? ॥७७॥ पडिवन्नपक्खवाओ गुणसंजुत्तो समुज्जओ सफलो । बाणो व्व हिययलगगो मारइ सुयणो अदीसंतो ॥७८॥ १. "दीपार्थे-देशी." इति प्रतौ टिप्पणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122