Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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गाहारयणकोसो लच्छी धुआ, जामाउओ हरी, तह य पणइणी गंगा । अमय-मियंका य सुआ अहो ! कुडुंबं महोअहिणो ॥४०॥ माहप्पं तं खलु लवणिमाए जं किल सयं समुद्दम्मि । निवडंति करसत्ते वि जडसहावे वि सरियाओ॥४१॥ जह जह सरियाओ जलं खिवंति तह तह किलम्मए उयही। महिलाहिंतो रु(रि)द्धि ईहंति कहं महासत्ता ? ॥४२॥ पूरिज्जंतो वि जलेहिं जलनिही जलहरेहिं तणुआइ । उवयरियं पि हु उवरिद्धिएहि गरुयाण अवयरियं ॥४३॥ सोसं न गओ, न गओ रसायलं, जलहि ! किं न फुडिओ सि ? । तडसंठिया वि सउणा तण्हइया जस्स वोलीणा ॥४४॥ लच्छीए विणा रयणायरस्स गंभीरिमा तह ज्जेव । सा लच्छी तस्स विणा कस्स न गेहे परिब्भमइ ? ॥४५॥ विहलं पडिच्छिउँ गुरुययाण पयई, न कारणाविक्खा । गिरिसरिगलथिए पत्थरे वि रयणायरो धरइ ॥४६॥
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८. अथ वडवानलप्रक्रमः जं अत्थीहि न पिज्जइ आसाइज्जइ न सउणसत्थेहिं । तं सायरस्स सलिलं खवंत ! वडवानल ! नमो ते ॥४७॥ सोसउ म सोसउ च्चिय सलिलं रयणायरस्स वडवऽग्गी । जं लहइ जले जलणो तेणं चिय किं न पज्जत्तं ? ॥४०॥ पायालो(?लु यरगहरीहि सायरलहरीहिं जा न उल्हविया । सा वडवानलतण्हा कह फिट्टइ सरिझलक्केहिं ? ॥४९॥ का समसीसी वडवानलेण इयराण तेयवंताणं ? । उल्हवियसिहिसमूहो वि इंधणं जस्स मयरहरो ॥५०॥ उयहि-वडवानलाणं परप्परुल्हवण-सोसणमणाणं । जा वट्टइ संरंभो ताव सुहं जियइ जियलोओ ॥५१॥ दु च्चेय पत्तरेहा उत्तम-अहमासु पुरिसपंतीसु । दिताणं रयणनिही, मग्गंताणं तु वडवग्गी ॥५२॥
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