Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 23
________________ सिरिजिणेसरसूरिविरइओ ९. अथ कृष्णक्रीडाप्रक्रमः सो को वि गुणो गोवालियाण जइ नत्थि कन्ह ! एक्को वि । उज्जयसीलावसरे तह वि हु मा बि(वि)भरिज्जासु ॥५३॥ उय ऊढभुवणभारो वि केसवो सिहिभरेण राहाए । कुवलयदलं व तुलिओ, हलुइज्जइ को न पिम्मेण ? ॥५४॥ किसिओ सि कीस केसव ! जं न कओ धन्नसंगहो मृढ ! । कत्तो मणपरिओसो वि साहियं मुंजमाणस्स ? ॥५५॥ सच्चं चेय भुयंगी वि साहिया किर विसाहिया कण्ह !। साहीणविणयपणओ वि जीए घुम्माविओ तं सि ॥५६॥ कसिणे वि जले कण्हस्स कालिओ फणिमणोहिं उवइ(१ दि)हो । देहुप्पन्ना वि विसंवयंति दिव्वे परावु(हु)त्ते ॥५७॥ उप्पज्जति चयंति य बहुसो जलमाणुसीओ जलहिम्मि । सा लच्छी वच्छयलं अलंकियं जीए कन्हस्स ॥५८॥ जलनिहिमुक्केण वि कुत्थुहेण एतं(? पत्त) मुरारिणो हिययं । तेण उण तम्मि ठाणे न याणिमो किं पि विणिहित्तं ॥५९॥ सो सग्गो सा लच्छी ताई वत्थाइं ते अलंकारा । राहापलोयडीसा(?हीणा) हरिणो हियए खुडुक्खुडइ ॥६०॥ हिययाउ जा न मुक्का, अहमाण वि संगयं अणुचरंती। कण्हस्स तीए लच्छीए पडिकयं किं नु कायव्वं ? ॥६१॥ १०. अथ नगरवर्णनपक्रमः जत्थ ससिकंतकविसीसयंकिओ सूरकंतमणिसालो । ससि-रवि(रविससि संगे परिहाजलाई सोसेइ पोसेइ ॥६२॥ परिहाजलसंकेतो मरगयसिहरंकिओ फलिहसालो । सहइ जहिं जलहिजलंतसेससयणत्थविण्हो(ण्हु) व्व ॥६३॥ सियकरकिरणनिरंतरफुरंतससिकंतसालभंजीहि । रयणीसु तियसभवणाई जत्थ धारागिहायति ॥६४॥ पइदियहं विलसंते दट्टुं गोरी-महेसरे जत्थ । कुडेण आगओ हिमगिरि व्व धवलो सहइ सालो ॥६५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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