Book Title: Gaharayankosa
Author(s): Jineshwarsuri, Amrutlal Bhojak, Nagin J Shah, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 19
________________ सिरिजिणेसरसूरिविरइओ पडिवज्जतो वि सया कलंतरं नेअ जस्स मुहचिन्न(न्हें)। पावइ चंदो तं कमलकुलगिहं नमह वीरजिणं ॥४॥ २. अथ ब्रह्मणः स्तुतिः तं पणमह तिगिन्निच्छलं (१) ण निवसइ निवेसक[म]लम्मि । जस्स परिमाणनिवहो व्च भुवणनिम्माणपडिवन्नो ॥५॥ पढमं चिय धवलकओववीयमंबुरुहगोयरं नमह । हरिनिज[१य] जहरमोखित्तनालसुतं पिव सयंभुं ॥६॥ ३. अथ विष्णुस्तुतिः सेसफणामणिदप्पणबिंबिज्जंतस्स कोलरूवस्स । धरणिधरणम्मि हरिणो वराहतहाइयं नमह ॥७॥ तं नमह जस्स वच्छे लच्छिमुहं कोत्थुहम्मि संकंतं । दीसइ मयपरिहीणं ससिबिंबं सूरबिंबम्मि ॥८॥ रक्खतु वो रोमलया मायामहिलत्तणे महुमहस्स । गूढोयरतामरसाणुसारिणी भमरमाल व्व ॥९॥ वियडससिमंडलायंतसलिलभरियम्मि भुवणवलयम्मि । हरिणो हरिणच्छायाविलासपरिसंठियं जयइ ॥१०॥ * ४. अथ महेश्वरस्तुतिः तं नमह जस्स रेहइ वियडजडाहारपासपडिलग्गं । रइकलहकुविअपवइविभिण्णवलयं व ससिखंडं ॥११॥ पणमह पणयपकुव्वियगोरीचलणग्गलग्गपडिबिंबं । दससु नहदप्पणेसुं एयारहतणुहरं रुदं ॥१२॥ तं नमह जो जडायडलीलासंदाणियं समुव्वहइ । गोरीकवो[लउ]वरियकंतिसेनं पिव मयंकं ॥१३॥ पसुवइणो रोसारुणपडिमासंकंतगोरिमुहयंदं । गहियऽग्यपंकयं पिव सझासलिलंजलिं नमह ॥१४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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