________________
बाल-लक्षण
दीघं संतस्स योजनं।
'और लंबे हो जाते हैं कोस थके-मांदे व्यक्ति के थके-हारे व्यक्ति के।'
मैंने सुना है, अमरीका का एक बहुत बड़ा विचारक, अपनी वृद्धावस्था में दुबारा पेरिस देखने आया अपनी पत्नी के साथ। तीस साल पहले भी वे आए थे अपनी सुहागरात मनाने। फिर तीस साल बाद जब अवकाशप्राप्त हो गया वह, नौकरी से छुटकारा हुआ, तो फिर मन में लगी रह गई थी; फिर पेरिस देखने आया। __ पेरिस देखा, लेकिन कुछ बात जंची नहीं। वह जो तीस साल पहले पेरिस देखा था, वह जो आभा पेरिस को घेरे थी तीस साल पहले, वह कहीं खो गई मालूम पड़ती थी। धूल जम गई थी। वह स्वच्छता न थी, वह सौंदर्य न था, वह पुलक न थी। पेरिस बड़ा उदास लगा। पेरिस थोड़ा रोता हुआ लगा। आंखें आंसुओं से भरी थीं पेरिस की।
वह थोड़ा हैरान हुआ। उसने अपनी पत्नी से कहा, क्या हुआ पेरिस को? यह वह बात न रही, जो हमने तीस साल पहले देखी थी। वे रंगीनियां कहां! वह सौंदर्य कहां! वह चहल-पहल नहीं है। लोग थके-हारे दिखाई पड़ते हैं। सब कुछ एक अर्थ में वैसा ही है, लेकिन धूल जम गई मालूम पड़ती है। __पत्नी ने कहा, क्षमा करें, हम बूढ़े हो गए हैं। पेरिस तो वही है। तब हम जवान थे, हेममें पुलक थी, हम नाचते हुए आए थे, सुहागरात मनाने आए थे। तो सारे पेरिस में हमारी सुहागरात फैल गई थी। अब हम थके-मांदे जिंदगी से ऊबे हुए मरने के लिए तैयार तो हमारी मौत पेरिस पर फैल गई है। पेरिस तो वही है।
उन जोड़ों को देखें, जो सुहागरात मनाने आए हैं। उनके पैरों में अपनी स्मृतियों की पगध्वनियां सुनाई पड़ सकेंगी। उनकी आंखों से झांकें, जो सुहागरात मनाने आए हैं; उन्हें पेरिस अभी रंगा-रंग है। अभी पेरिस किसी अनूठी रोशनी और आभा से भरा है। अपनी आंखों से मत देखें, तीस साल पहले लौटें। तीस साल पहले की स्मृति को फिर से जगाएं। . ठीक कहा उस पत्नी ने। पेरिस तो सदा वही है, आदमी बदल जाते हैं। संसार तो वही है। तुम्हारी बदलाहट-और संसार बदल जाता है। संसार तुम पर निर्भर है। संसार तुम्हारा दृष्टिकोण है।
बुद्ध यह सूत्र क्यों कहते हैं? क्या प्रयोजन है? प्रयोजन है यह बताने का कि तुम यह मत सोचना कि संसार ने तुम्हें बांधा। तुम यह मत सोचना कि संसार ने तुम्हें दुखी किया। तुम यह मत सोचना कि संसार बहुत बड़ा है, कैसे पार पा सकूँगा?
लोग कहते हैं, भवसागर है, कैसे पार पाएंगे?
बुद्ध कहते हैं, यह मत सोचना। संसार अगर बड़ा है तो तुम्हारे ही कारण। संसार छोटा हो जाता है, तुम्हारे ही कारण। भवसागर बन जाता है, अगर तुम सोए हो। सिकुड़कर दीन-हीन जल की ग्रीष्म ऋतु की रेखा रह जाती है, अगर तुम जागे