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पढमं हवह मंगलं-प्रथम (मुख्य) मंगल है। अर्थात
इस मंगल के बराबर संसार में कोई भी मंगल नहीं है।
२. पंचिंदिय-सुत्तं । पंचिंदियसंवरणो--पांच इन्द्रियों और उनके विषय
विकारों को रोकनेवाले, तह नवविहबंभचेरगुत्तिघरो--तथा नव प्रकार की
ब्रह्मचर्य की गुप्तियों के धारक, चउविहकसायमुक्को--क्रोधादि चार कषायों से रहित
अर्थात्-क्रोध, मान, माया, लोभ को
- जीतनेवाले, इअ अट्ठारसगुणेहिं संजुत्तो—इस प्रकार अठारह गुणों
से संयुक्त ॥१॥ पंचमहन्वयजुत्तो--पांच महाव्रतों से युक्त, पंचविहायारपालणसमत्थो--पांच प्रकार के प्राचारों
को पालन करने में समर्थ, पंचसमिओ तिगुत्तो-पांच समिति और तीन गुप्तियों
से युक्त, छत्तीसगुणो गुरु मज्झ--इस प्रकार छत्तीस गुणों के
धारक आचार्य मेरे गुरु हैं ॥२॥
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