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(२३ ) चिट्ठउ दूरे मंतो-हे भगवन् ! आपका विषधरस्फुलिंग
मंत्र तो दूर रहो, परन्तु तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ--आपको किया हुआ
वन्दन भी बहुत शुभफल को देनेवाला है नरतिरिएसु वि जीवा-नामको स्मरण करने से कोई भी
प्राणी नरक और तियचों की गति में
नहीं जाते पावंति न दुक्खदोगच्च-और वे दुःख तथा दरिद्र
अवस्था को नहीं प्राप्त करते ॥ ३ ॥ तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणिकप्पपायकन्भहिए--
चिन्तामणिरत्न और कल्पवृक्ष से भी अधिकाधिक महिमावाला आपका सम्यग्दर्शन मिल
जाने पर पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं--भव्यजीव
निर्विघ्नता से अजर अमर स्थान (मोक्षपद)
को प्राप्त करते हैं ॥४॥ इअ संथुओ महायस-हे महायशस्वी प्रभो ! इस प्रकार
आपकी स्तवना की, जो भत्तिभरनिन्भरेण हियएण--भक्तिसमूह से परिपूर्ण
हृदयवाली है
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