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(२२) सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधु महाराज को मेरा नमस्कार हो।
१७. 'उवसग्गहरे' थोत्तं। उवसग्गहरं पासं--उपसगों का नाश करनेवाला पार्श्व
यक्ष जिनका सेवक है, उन पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं--कर्मों के समूह से रहित
श्री पार्श्वनाथप्रभु को मैं चन्दन करता हूँ विसहरविसनिन्नासं-जो नामस्मरण मात्र से सौ के
विष का नाश करनेवाले हैं और मंगलकल्लाणआवासं-मंगल तथा कल्याण के आवास
(घर) हैं ॥१॥ विसहरफुलिंगमंतं--पार्श्वनाथप्रभु के विषधरस्फुलिंग
नामक मंत्र को कंठे धारेइ जो सया मणुओ-जो मनुष्य अपने कंठ में
सदा धारण करता है जपता है तस्स गहरोगमारी-उस मनुष्य के दुष्ट ग्रह, रोग,
___ महामारी, और दुट्ठजरा जंति उवसाम-दुष्ट ज्वर आदि सब उपद्रव
शान्त होते हैं या अपने आप मिट जाते हैं ॥२॥
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