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(३१) धम्माइगरे नमंसामि-धर्म की आदि करनेवाले जिन
श्वरों को मैं नमस्कार करता हूँ॥१॥ तमतिमिरपडलविद्धंसणस्स-अज्ञान रूप अन्धकार
के समूह को नाश करनेवाले सुरगणनरिंदमहियस्स-और देवसमूहों से तथा नरेन्द्रों
से पूजित (पूजे हुए) सीमाधरस्स बंदे, पप्फोडिअमोहजालस्स–मोहनीय
कर्म के जाल को नाश करनेवाले और मर्यादा के धारण करनेवाले आगमसूत्रों को
मैं चन्दन करता हूँ ॥२॥ जाईजरामरणसोगपणासणस्स–जन्म, जरा, मरण
और शोक का नाश करनेवाले. कल्लाणपुक्खलविसालसुहावहस्स-कल्याणकारी एवं
अति विशाल मोक्षसुख को देनेवाले, को देवदाणवनरिंदगणचिअस्स–देव, दानव और
नरेन्द्र समूहों से पूजित, धम्मस्स सारमुवलब्भ करे पमायं । -श्रुतधर्म के सार को
प्राप्त करके प्रमाद कोन करे ? कोई नहीं ॥३॥ सिद्धे भो! पयओ णमो जिणमए-बहुमानपूर्वक नय
प्रमाणों से सिद्ध जिनमत को हे विद्वानो ! नमस्कार करो!
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