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(१४६ ) नियम धारण करना। प्रातःकाल में धारण की हुई वस्तुओं को संध्या समय और रात्रि में धारण की हुई वस्तुओं को प्रातः समय याद कर लेना चाहिये। यदि नियम में रक्खी हुई चीजों में से कोई चीज अनायास अधिक वापरने में आ गई हो तो उसका गुरु के पास दंड लेकर शुद्ध होना चाहिये । इन नियमों से नियमित वस्तु रखनेवाले श्रावक श्राविका को पन्द्रह उपवास के जितना लाभ मिलता है। ८७. मुँहपत्ति और अंगपडिलेहण के ५० बोल। दृष्टिपडिलेहण करते समय--
१ सूत्र, अर्थ, तत्व करी सद्दई । मुहपत्ति के पट उलट-पलट करते समय
४ सम्यक्त्वमोहनीय, मिथ्यात्वमोहन्यी, मिश्रमोहनीय, परिहरु । ७ कामराग, स्नेहराग, दृष्टिराग परिहरूं । बाँये हाथ को पडिलेहते समय
१० सुदेव, सुगुरु, सुधर्म आदरं । १३ कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरु । १६ ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरूं। दाहिने हाथ को पडिलेहते समय
१९ ज्ञानविराधना, दर्शनविराधना, चारित्रविराधना परिहरु।२२ मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति आदरुं । २५ मनदंड, वचनदंड, कायदंड परिहरु । बाँई भुजा के नीचे पडिलेहते समय
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