Book Title: Devasia Raia Padikkamana Suttam
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Akhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad

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Page 178
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५९ ) सामाइयं करेइ' श्रीआवश्यकसूत्रबृहट्टीका के इस वाक्य से स्पष्ट है कि गुरुवन्दन किये विना सामायिक नहीं हो सकती। इसलिये सामायिक लेने के पहले गुरुवन्दन अवश्य करना चाहिये । गुरुवन्दन के तीन भेद हैं-फेटावन्दन, थोभवन्दन और द्वादशावर्तवन्दन । हाथ जोड़ कर मस्तक नमाने से फेटावन्दन, दो खमासमणपूर्वक पञ्चाङ्ग नमस्कार करने से थोभवन्दन और इरियावहि पडिक्कमण कर दो खमासमण, दो वांदणा, खमासमण अब्भुटिओ, इच्छकार पूछने से द्वादशावर्त वन्दन होता है । सामायिक लेने के पहले निष्कारण द्वादशावर्त चन्दन से गुरु को, उनके अभाव में स्थापनाचार्य को अवश्य वांद लेना चाहिये । कारण विशेष में फेटा या थोभ बन्दन भी कर लिया जाय तो कोई हरकत नहीं हैं। संलग्न एकाधिक सामायिक करना हो उसमें प्रथम गुरुवन्दन कर लेना, बाद में बार बार गुरुवन्दन की आवश्यकता नहीं है। प्रश्न- सामायिक बैठे-बैठे उच्चारना, या खड़े होकर उच्चारना ? उत्तर—सामायिकविधान में 'बेसणे संदिसाउं, बेसणे ठाउं' यह आदेश लेना लिखा है। इससे साफ जाहिर होता है कि सामायिक खडे होकर ही उच्चारना चाहिये तभी उक्त आदेश सार्थक होंगे । बैठा हुआ मनुष्य बैठने का आदेश मांगे यह उपहास्य जनक है और अविनय का भी For Private And Personal Use Only

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