Book Title: Devasia Raia Padikkamana Suttam
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Akhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 186
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६७ ) हो, तो उसके प्रायश्चित्त के निमित्त भुवन-क्षेत्रदेव का कायोत्सर्ग करना चाहिये, पर उनकी स्तुति नहीं कहना चाहिये। प्रश्न-माणिभद्रयक्ष के सामने चावलों का साथिया और सिद्ध शिला मांड करके खमासमण देकर के वन्दन करना या नहीं ? उत्तर-पालीताणा से प्रकाशित मासिक पत्र 'कल्याण' वर्ष ७ वे के अंक ३ के पृष्ठ ८३ में जेरामभाई पीताम्बरकी शंका के समाधान में चतुर्थस्तुतिक लब्धिमूरिने लिखा है कि “ मणिभद्रजी शासनना अधिष्ठायक होबाथी साधर्मी बन्धु तरीके श्रावक फेटावंदन करी शके छे, खमासमण दईने वंदन तो महाव्रतधारी गुरु तथा वीतरागदेवने ज थाय, अने मणिभद्रजी सन्मुख साथीओ करवानो होतो नथी, तो पछी सिद्धशिलानी वात ज क्यांथी होय ? " मई १९५०, वैशाख सं. २००६ । इससे साफ जान पडता है कि माणिभद्र अविरति सम्य- दृष्टिदेव है उसके साथ श्रावक का स्वधर्मीभाईपन का सम्बन्ध है । इसलिये श्रावक उसे खमासमण देकर वन्दन नहीं कर सकता सिर्फ हाथ जोड़ सकता है। माणिभद्र के सामने चावलों का साथिया भी नहीं किया जा सकता तो सिद्धशिला का आकार हो ही नहीं सकता। यही बात दूसरे अधिष्ठायक अधिष्ठायिकाओं के विषय में समझना चाहिये। आज के जमाने में श्रावक, साधु, श्राविका, साध्वी शासनदेवों को खमासमण देकर वन्दन करते हैं यह प्रथा अवांछनीय और अज्ञानमूलक है । - चतुर्थस्तुतिक रेलविहारी श्रीशान्तिबिजयजीने स्वरचित 'जैनमतप्रभाकर' पुस्तक के पृ० २८६ में लिखा है कि For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 184 185 186 187 188