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(७३) अब्भुडिओ हं अभितरदेवसिअं खामेलं-मैं उद्यम
वन्त हुआ हूँ दिन के अन्दर किये हुए
अपराधों को खमाने के लिये इच्छं, खामेमि देवसिअं--आपकी आज्ञा प्रमाण है, में
भी दिवस सम्बन्धी अपराधों को खमाता हूँ जं किंचि अपत्तिअं परपत्तिअं-जो कुछ अभीति और
विशेष अप्रीति पेदा करनेवाला अपराध, भत्ते, पाणे, विणए, वेआवच्चे--आहार, पानी, विनय
__ अभ्युत्थानादि और सेवाभक्ति रूप वैया
कृत्य करने में आलावे, संलावे उच्चासणे समासणे-आप के साथ
बातचीत या कथारूप एक वार बात करने, वार वार बात करने, आपसे ऊँचे आसन
पर बैठने, और बराबरी के आसन पर बैठने अंतरभासाए, उरिभासाए-किसीके साथ वार्ता
लाप करते हुए, बीच में बोलने और गुरुने जो
विस्तार से बोलने में, जं किंचि मज्झ विणयपरिहीणं-जो कोई मुझ से विनय
रहितपने से
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