Book Title: Devasia Raia Padikkamana Suttam
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Akhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
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(११७)
"आचार्य वसुदेवजी, दियो कर्म झकझोर । ज्ञान ऊपर द्वेष परंतां, बांध्या कर्म कठोर ।” वरिया वरदत्तजी अज्ञान ॥सु० ॥ ६॥ आराधी पंचमी भारी, उप्पन्ना स्वर्ग मोझारी विदेह में और भी धारी, मोक्ष गया केवल ले लारी । "एम अनेक उद्धर्या, आगम में परिमाण । जो करसी सो बरसी प्राणी, पंचमी तप निर्वाण । " चरण के शरणे आयो ज्ञान ॥ सु० ।। ७ ॥
पंचमीतिथि तपसज्झाय। . (तेह पुरुष हवे वोनवेजी- ए राह )
पंचमीतप भवि प्राणिया रे, कीजे अधिक उल्लास । गुणमंजरी वरदत्तजी रे, कीनो जिम तप खास ॥ पं० ॥१॥ ए तिय कल्याणक सुणो रे, संभव केवलज्ञान । सुविधि नेमिजिन जनमिया रे, चवण चन्द्रप्रभ मान ॥ ५० ॥ २॥ अजित संभव अनन्तजी रे. वली श्रीधर्मनिन मोक्ष । संयम कुन्थुनाथनो रे, नव कल्याणक सौख्य ॥ पं० ॥३॥ कल्याणक दश क्षेत्रना रे, नेऊ जिनना जाण । मास वर्ष ते पांचनो रे, तप आराधो नाण ॥ ५० ॥४॥ किरिया गुरुगम पामीने रे, कीजे शुद्ध आचार । सूरिराजेन्द्र पद ध्यायने रे, रायचन्द अवधार ॥ पं० ॥ ५ ॥
६७. अष्टमीतिथि चैत्यवन्दन । पर्वतिथि दिन अष्टमी, आराधी शुभ चित्त । देववन्दन तप जप युत, पूजावश्यक नित्त ॥ १ ॥
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