Book Title: Devasia Raia Padikkamana Suttam
Author(s): Jayantvijay
Publisher: Akhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 146
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२७ ) थइ बोकडा, जनम मरण बहु करसी ॥ ब्र० ॥ ११ ॥ इग्यार सरे दिन उपवास करीने, दया धरम दिल धरसी । शुभ रमणी संतति लीला, सुखपालां बेठा फरसी ॥ ० ॥ १२ ॥ जिन आगम सरधा लावी, मौन धरी तप आदरसी । सकळ कर्मारो अंत करीने, शिव सजनी सेजां वरसी ॥ ० ॥ १३ ॥ ६९. व्यसननिषेधोपदेश पद । जिन्दगी बिगड जायगी, व्यसनों को छोड़ो भाई ॥ टेर ॥ द्यूत रमण से पांडव पांचों, बारा वरस भटकाई | मांसादन से राजा श्रेणिक, पहली नरक सिधाई ॥जि०॥१॥ मदिरा पान से द्वारिका नगरी, खिण में दाह कराई । वैश्यागमन करतां कृतपुन्ये, लज्जा माल गमाई ॥जि० ॥२॥ शिकार खेलते रामचन्द्रने, सती सीता छिटकाई । चोरी कार्य मंडिक तस्कर, शूलिपे आरोपाई ॥ जि० ॥३॥ परत्रिया रमण लालच में, रावण राज्य गमाई । मरके वो गया नरक में, वेदना परवश पाई ॥ ज० ॥ ४ ॥ व्यसनों के फल सुनके यारो, करो त्याग चित लाई । सूरियतीन्द्र की सीख सयानी, मानो तो सुख पाई || जि०||५|| ७०. मूंजीपन दो भगाई पद | लक्ष्मी चली जायगी, सुकृत कर लो भाई ॥ टेर ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188