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( १२७ )
थइ बोकडा, जनम मरण बहु करसी ॥ ब्र० ॥ ११ ॥ इग्यार सरे दिन उपवास करीने, दया धरम दिल धरसी । शुभ रमणी संतति लीला, सुखपालां बेठा फरसी ॥ ० ॥ १२ ॥ जिन आगम सरधा लावी, मौन धरी तप आदरसी । सकळ कर्मारो अंत करीने, शिव सजनी सेजां वरसी ॥ ० ॥ १३ ॥
६९. व्यसननिषेधोपदेश पद ।
जिन्दगी बिगड जायगी, व्यसनों को छोड़ो भाई ॥ टेर ॥ द्यूत रमण से पांडव पांचों, बारा वरस भटकाई | मांसादन से राजा श्रेणिक, पहली नरक सिधाई ॥जि०॥१॥ मदिरा पान से द्वारिका नगरी, खिण में दाह कराई । वैश्यागमन करतां कृतपुन्ये, लज्जा माल गमाई ॥जि० ॥२॥ शिकार खेलते रामचन्द्रने, सती सीता छिटकाई । चोरी कार्य मंडिक तस्कर, शूलिपे आरोपाई ॥ जि० ॥३॥ परत्रिया रमण लालच में, रावण राज्य गमाई । मरके वो गया नरक में, वेदना परवश पाई ॥ ज० ॥ ४ ॥ व्यसनों के फल सुनके यारो, करो त्याग चित लाई । सूरियतीन्द्र की सीख सयानी, मानो तो सुख पाई || जि०||५||
७०. मूंजीपन दो भगाई पद |
लक्ष्मी चली जायगी, सुकृत कर लो भाई ॥ टेर ॥
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