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(७१) चउवीसजिणविणिग्गयकहाइ-चोवीस जिनेश्वरों के
मुख से निकली हुई कथा के द्वारा वोलंतु मे दिअहा ।--मेरे दिन व्यतीत हो ॥४६॥ मम मंगलमरिहंता ।--मुझको अरिहन्त भगवान् मंगळ
करनेवाले हों सिद्धा साहू सुअंच धम्मो अ--सिद्धभगवान् साधु
महाराज, श्रुतधर्म (आगमसूत्र ) और संयम
धर्म ये सब मेरे लिये मंगल रूप हों और ये सम्मत्तस्स य सुद्धि-सम्यक्त्व की शुद्धि को। दितु समाहिं च बोहिं च ।--और समाधि (चित्त
स्वास्थ्य) और बोधि (जिनधर्म) की प्राप्ति
को देवें ॥४७॥ पडिसिद्धाणं करणे--निषेध किये हुए हिंसाजनक पाप
कार्यों को करने से किच्चाणमकरणे पडिक्कमणं--सामायिक, पूजादि करने
योग्य कार्यों को नहीं करने से जो दोष लगता है उसके प्रायश्चित्त के निमित्त प्रति
क्रमण किया जाता है, असदहणे अ तहा--जिनेन्द्र भाषित तत्वों में अवि
श्वास और
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