________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ८१ )
सोहह फणिमणिकिरणालिद्धड - शोभायमान है, और नागेन्द्र की फणि पर रही हुई मणियों की किरणों से व्याप्त है
नं नवजलहर तडिल्लयलंछिउ - जो मानो कि नवीन मेघ की बिजली रूप लता से अंकित हो सो जिणु पासु पयच्छउ वंछिउ । वे श्रीपार्श्वनाथप्रभु मेरे को वांछित फल प्रदान करें ।। २ ॥ ४१. भरहेसरज्झायसुत्तं ।
भरहेसर बाहुबली -- भरतचक्रवर्त्ती, बाहुबलीजी, अभयकुमारो अ ढंढणकुमाररो । - अभयकुमारजी और ढणकुमारजी,
सिरिओ अणियाउत्तो— स्थूलभद्र का छोटाभाई श्रीयक, अन्निकापुत्र आचार्य,
अइमुक्तो नागदत्तो अ । --अतिमुक्तकुमारजी तथा नागदत्तकुमारजी ॥ १ ॥ मेअज्ज धूलिभद्दो- - मेतार्यमुनि, स्थूलिभद्रजी,
१ अदत्तादानवत को यथार्थ रीति से पालन करने में अतिदृढ और अपनी अटूट श्रद्धा के प्रभाव से शूली को भी सिंहासन बनानेवाले पहेला, तथा सर्पक्रीड़ा में अतिकुशल, और जातिस्मरणज्ञान से दीक्षा लेकर कषाय रूपी सर्पों को दमन करनेवाला दूसरा ये दो नागदत्त हुए हैं ।
६
For Private And Personal Use Only