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(८०)
पंचमहव्वयधारा--पांच महाव्रतों के धारण करनेवाले अट्ठारससहस्ससोलंगधारा-अठारह हजार शीलाङ्ग
रथ के धारण करनेवाले और अक्खयायारचरित्ता--अखंडित साध्वाचार एवं चारित्र
के पालन करनेवाले हैं ते सव्वे सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि ।--उन सब
मुनिवरों को सिर झुका कर भावपूर्वक मस्तक से वन्दन करता हूँ ॥१॥
४०. चउक्कसायसुतं । चक्कसायपडिमल्लुल्लूरणु--क्रोधादि चार कषाय रूप
शत्रुओं का नाश करनेवाले, दुजयमयणबाणमुसुमूरणु--कठिनाई से जीते जाने
वाले कामदेव के बाणों को तोड़नेवाले, सरसपियंगुवण्णु गयगामिउ--रस सहित प्रियंगु(रायन)
वृक्ष के समान नीलवर्णवाले और हाथी के
समान सुन्दर गति करनेवाले जयउ पासु भुवणतंयसामिउ ।-तीन भुवन के स्वामी
श्रीपार्श्वनाथमभु जयवान् हो ॥१॥ जसु तणु-कंतिकडप्प सिणिद्धउ-जिसके शरीर की
कान्ति का समूह चिकना ( चकचकित)
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