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(५०) इच्छामि पडिक्कमिउं—निवृत्त होने के लिये चाहता हूँ सावगधम्माइयारस्स ।-श्रावधर्म सम्बन्धी अतिचारों
से ॥१॥ जो मे वयाइआरो-जो मेरे व्रतों के अतिचार में नाणे तह दसणे चरित्ते अ---ज्ञानसम्बन्धी, तथा दर्शन
सम्बन्धी, चारित्रसम्बन्धी और च शब्द से
तप, वीर्य एवं संलेखना सम्बन्धी, सुहुमो अ बायरो वा-छोटा अथवा बड़ा दोष लगा हो तं निंदे तं च गरिहामि। उसकी मैं आत्मसाक्षी से निन्दा
और गुरुसाक्षी से गर्दा करता हूँ ॥ २ ॥ दुविहे परिग्गहम्मी-घोडा, हाथी, नौकर, स्त्री आदि
सचित्त और सोना, चांदी वस्त्र, मकान
आदि अचित्त इन दो प्रकार के परिग्रह को सावज्जे बहुविहे अ आरंभे-और पापकारी अनेक
प्रकार के आरम्भ को, कारावणे अ करणे-दूसरों के पास कराने में, स्वयं
करने में और करनेवालों की अनुमोदना
करने में जो अतिचार दोष लगा हो, पडिक्कमे देसि सव्वं ।-उन दिवस सम्बन्धी अतिचार
दोषों का में पडिक्कमण करता हूँ-उन दोषों से निवृत्त ( अलग) होता हूँ॥३॥
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