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(५७) धण-धन्न-खित्त-वत्थू-धन, धान्य-अनाज, क्षेत्र, घर,
दुकान, न्योरा, आदि वस्तु, रुप्पसुवन्ने अ कुविअ-परिमाणे-चांदी, सोना और ताँबा,
पीतल, लोह आदि धातु के प्रमाण का और दुपए चउप्पयम्मि य-दौ पैरवाले-दास, दासी, नौकर
आदि और चार पैरवाले-गाय, बलद, घोड़ा, भैंस, बकरी आदि के प्रमाण का उल्लंघन
किया हो पडिक्कमे देसिअंसव्वं ।-दिवस सम्बन्धी उन दोषों का
मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ॥ १८॥ गमणस्य य परिमाणे,—गमन के प्रमाण का उल्लंघन
किया हो, दिसासु उड्ढे अहे अतिरिअं च-चार दिशाओं, चार
विदिशाओं, ऊर्ध्वदिशा, अधोदिशा और
तिरछी दिशा के प्रमाण में घुड्ढी सइ अंतरद्धा--याददास्त के विस्मरण (भूल) से
कोशों की वृद्धि या कमी की हो। पढमम्मि गुणव्वए निंदे। प्रथम गुणव्रत में मैं उन
दोषों की निन्दा करता हूँ ॥ १९ ॥ मज्जम्मि य मंसम्मि अ-मदिरा और · मांस आदि
अभक्ष्य वस्तुओं के
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