________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आयरियमप्पसत्थे-अप्रशस्त भाव में वरतते हुए जो
विरुद्ध आचरण इत्थ पमायप्पसंगणं ।--प्रमाद के प्रसंग से इस व्रत में
किया हो ॥ १३॥ वो यह कितेनाहडप्पओगे--चोर को चोरी करने की प्रेरणा करना,
और उसको सहायता देना १, तप्पडिस्वे विरुद्धगमणे अ-असली चीज दिखा कर
नकली ( खराब ) चीज देना २, राज्य विरुद्ध दाणचोरी करना या राजा के हुक्म
विरुद्ध प्रवृत्ति करना ३, कूडतुल-कूडमाणे-तराजू, तोल ऐसा रखना जिससे कम
दिया जाय और अधिक लिया जाय ४, तथा खोटे माप रखना जिससे माप में कम
दिजा जाय और अधिक लिया जाय ५, पडिक्कमे देसिअंसव्वं ।-दिवस सम्बन्धी ये अतिचारदोष
लगे हो उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ॥१४॥ चउत्थे अणुव्वयम्मी--चौथे अणुव्रत में निच्चं परदारगमणविरईओ--पराई स्त्री के साथ हमेश
भोगविलास करने की विरति संवन्धी आयरियमप्पसत्थे--अप्रशस्त भाव में जो कुछ आचरण
किया हो-अतिचार दोष लगा हो,
For Private And Personal Use Only