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(६३) बीए सिक्खावए निदे।--दूसरे शिक्षावत में अतिचार दोष
लगे हों उनकी मैं निन्दा करता हूँ॥ २८ ॥ संथारुच्चारविही-१ संथारा और २ स्थंडिल मात्रा की
विधि करने, पमाय तह चेव भोअणाभोए --३ प्रमाद करने, तथा
४ भोजन की चिन्ता करने और पोसहविहि-विवरीए--५ पौषध की विधि में विपरीत
__ आचरण करने आदि से तइए सिक्खावए निंदे। -तीसरे शिक्षाव्रत में जो अति
चार दोष लगे हों उनकी मैं निन्दा करता
हूँ ॥ २९ ॥ सचित्ते निक्खिवणे--देने योग्य वस्तु को सचित्त पर
रखना या अचित वस्तु में सचित्त का
मिश्रण कर देना १, पिहिणे ववएस मच्छरे चेव --अचित्त वस्तु को सचित्त
वस्तु से ढंक देना २, पराई वस्तु को अपनी या अपनी को पराई वस्तु कहना ३, ईर्ष्यादि
कषाय पूर्वक आहारादि दान देना ४, और कालइक्कमदाणे--गोचरी लाने का समय बीत जाने पर
गोचरी के लिये आमंत्रण देना ५,
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