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विलेवणे
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( ६१ )
से चन्दनादि
सदरूवरसगंधे - अयतना विलेपन लगाने, वाद्यादि के विविध शब्दों को सुनने, अनेक तरह के रूपों में मोहित होने, अनेक रसों का स्वाद लेने और सुगंधी पदार्थों को सूंघने,
वत्थासण- आभरणे -- वस्त्र, आसक्त होने आदि में,
आसन और आभूषणों में
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पडिक्कमे देसिअं सव्वं । - - दिवस सम्बन्धी जो अतिचार दोष लगे हों उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ॥ २५ ॥
कंदप्पे कुक्कुइए - - कामवासनाजनक
कथा या बात
कहना १, लोगों की हँसी, नकल और भाँडचेष्टा करना २,
मोहरि अहिगरणभोगअइरिते -- निरर्थक
अनुचित वचन बोलते रहना ३, हथियार, औजार तैयार करना, कराना ४, और भोगने की वस्तुओं को जरूरत से अधिक रखना ५,
दंडम्मि अणट्टाए, – अनर्थदंड नामक
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तइअम्मि गुणव्वए निंदे । -- तीसरे गुणव्रत के पांच या न्यूनाधिक अतिचार लगे हों. उनकी मैं निन्दा करता हूँ || २६ ॥
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