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(६)
तो तं हवह निव्विसं । उससे पेट विष रहित हो जाता है ॥ ३८ ॥
एवं अडविहं कम्मं -- इसी प्रकार ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्म रूप जहर को
रागदो ससमज्जिअं -- जो राग और द्वेष से बाँधा हुआ है आलोअंतो अ निंदंतो—उसको गुरुदेव के समीप आलोचना और आत्मसाक्षी से निन्दा करता हुआ विप्पं हणइ सुसावओ । - - सुश्रावक जल्दी से नाश कर देता है ॥ ३९ ॥
कयपावो वि मस्सो - पाप करनेवाला मनुष्य भी आलोइअ निंदिअ गुरुसगासे -- गुरुमहाराज के पास पाप की आलोचना और निन्दा करता हुआ होइ अइरेगलहुओ -- अतिशय हलका (स्वल्प भारवाला ) हो जाता है - उसके बहुत थोडे कर्म रह जाते हैं,
ओहरिअरु व भारवहो । —जैसा कि बोझा उठानेवाला मजूर बोझा उतारने से हलका हो जाता है ॥ ४० ॥
आवस्सएण एएण- इस आवश्यक ( प्रतिक्रमण ) क्रिया
के करने से
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