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(४८) ६ छट्टे क्रोध--गुस्से होना, अपना परिणाम तीव्र क्रोधी
रखना. ७सातमे मान--प्राप्त या अप्राप्त वस्तु का घमण्ड रखना ८ आठमे माया--स्वार्थिक बुद्धि से कपट-प्रपंच करना. ९ नवमे लोभ--धनादि समृद्धि का लालच रखना या
उसके संग्रह करने में लगे रहना. १० दशमे राग--पौद्गलिक वस्तु पर प्रेम रखना. ११ ग्यारमे द्वेष--अनिष्ट पदार्थों पर अरुचि रखना या
ईर्ष्या से हृदय में जलन १२ बारमे कलह-टंटा, फिसाद करना, कराना. १३ तेरमे अभ्याख्यान-किसी पर झूठा कलङ्क चढाना. १४ चौदमे पैशून्य-किसीकी चुगली खाना, नारद
विद्या धन्धा करना, १५ पन्द्रहमे रति अरति-सुख मिलने पर आनन्द मानना
और दुःख मिलने पर शोक संताप करना. १६ सोलमे परपरिवाद-दूसरों की निन्दा (झूठी
कथनी करना) १७ सत्तरमे मायामृषावाद-कपट सहित झूठ बोलना
या कपट की वृत्ति रखना.
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