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( ३६ )
अणायारो अणच्छिअच्वो -- नहीं आचरने लायक और नहीं इच्छने लायक काम किया हो
असावगपाउग्गो - - श्रावक ( जैनी ) को योग्य न हो ऐसा कार्य समाचरण किया हो
नाणे दंसणे चरित्ताचरिते - ज्ञान में, दर्शन में और देशविरति चारित्र ( श्राद्धधर्म ) में
सुए सामाइए - - श्रुतधर्म में तथा सामायिक में जो अतिचार दोष लगे हों ।
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तिन्हं गुत्तीणं, चउन्हं कसायाणं - - क्रोधादि चार कषायों के द्वारा तीन गुप्ति सम्बन्धी पंचमणुव्वाणं - - पांच अणुव्रत स्थूल प्राणातिपात
१, स्थूल मृषावाद २, स्थूल अदत्तादान ३, स्थूल परदारागमननिषेध, या स्वदारासन्तोष ४, और स्थूल परिग्रह परिमाण ५, तिन्हं गुणव्वयाणं -- तीन गुणत्रत - दिग्परिमाण १, भोगोपभोग २, और अनर्थदण्ड ३,
चउन्हें सिक्खावयाणं चार शिक्षाव्रत - सामायिक १, देशावकासिक २, पौषधोपवास ३, और अतिथिसंविभाग ४,
बारसविहस्स सावगधम्मस्स - - इस मुताबिक बारह प्रकार के श्रावकधर्म की
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