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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६ ) अणायारो अणच्छिअच्वो -- नहीं आचरने लायक और नहीं इच्छने लायक काम किया हो असावगपाउग्गो - - श्रावक ( जैनी ) को योग्य न हो ऐसा कार्य समाचरण किया हो नाणे दंसणे चरित्ताचरिते - ज्ञान में, दर्शन में और देशविरति चारित्र ( श्राद्धधर्म ) में सुए सामाइए - - श्रुतधर्म में तथा सामायिक में जो अतिचार दोष लगे हों । -- तिन्हं गुत्तीणं, चउन्हं कसायाणं - - क्रोधादि चार कषायों के द्वारा तीन गुप्ति सम्बन्धी पंचमणुव्वाणं - - पांच अणुव्रत स्थूल प्राणातिपात १, स्थूल मृषावाद २, स्थूल अदत्तादान ३, स्थूल परदारागमननिषेध, या स्वदारासन्तोष ४, और स्थूल परिग्रह परिमाण ५, तिन्हं गुणव्वयाणं -- तीन गुणत्रत - दिग्परिमाण १, भोगोपभोग २, और अनर्थदण्ड ३, चउन्हें सिक्खावयाणं चार शिक्षाव्रत - सामायिक १, देशावकासिक २, पौषधोपवास ३, और अतिथिसंविभाग ४, बारसविहस्स सावगधम्मस्स - - इस मुताबिक बारह प्रकार के श्रावकधर्म की For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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