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( ३७ )
जं खंडिअं जं विराहिअं-- जो कोई खंडना हुई हो और जो कुछ विराधना हुई हो,
तस्स मिच्छामि दुक्कडं उसका लगा हुआ पाप मेरा मिथ्या हो ।
२८. अतिचारगाथासुत्तम् ।
नाणम्मि दंसणम्मि अ-- ज्ञान और सम्यक्त्व में चरणम्मि तवम्मि तह य वीरियम्मि — चारित्र, तप, तथा वीर्य में
आयरणं आयारो -- जो आचरण करना वह आचार कहाता है ।
इय एसो पंचहा भणिओ । -- वह ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार इस प्रकार पांच प्रकार का कहा गया है ।। १ ॥
काले विणए बहुमाणे -- कालोकाल सूत्रों का अभ्यास करना १, ज्ञानी और ज्ञान का विनय करना २, ज्ञानियों के और ज्ञान के उपकरणों पर अतरङ्ग प्रेम - ( अधिक आदर ) रखना ३,
उवहाणे तह अनिहवणे -- तपश्चरण और क्रिया पूर्वक सूत्रों को पढ़ना ४, पढ़ानेवाले गुरु का नाम
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