________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३८ )
नहीं छिपाना अथवा मिथ्याभाषण नहीं
करना ५, वंजण-अत्थ-तदुभए- - सूत्रों के अक्षरों का शुद्ध उच्चारण करना ६, सूत्रों या उनके पदों का शुद्ध अर्थ करना ७, और सूत्रार्थ को शुद्ध पढना एवं शुद्ध समझना ८,
अट्ठविहो नाणमायारो । - इस प्रकार ज्ञानाचार आठ प्रकार का है ।। २ ॥
निस्संकिr निक्कंखिअ - - वीतराग के वचनों में शंका न रखना १, जिनमत के सिवाय अन्यमत की चाहना नहीं करना २,
निव्वितिमिच्छा अमूढदिट्टी अ--धर्म के फल में सन्देह
नहीं रखना या साधुओं के मल-मलिन शरीर और वस्त्रों को देख कर घृणा न करना ३, मिध्यावियों के चमत्कार देख कर व्यामोहित न होना ४,
उबवूह थिरीकरणे -- सम्यक्त्वधारी पुरुष - स्त्रियों के गुणों की प्रशंसा करना, अदेखाई न करना ५, धर्मप्राप्त पुरुष स्त्रियों को चल विचल देख कर पुनः धर्म में स्थिर करना ६,
वच्छल्लपभावणे अड्ड - स्वधर्मी भाईयों का अनेक प्रकार से हित ( सुखी) करना ७ और अन्यमतियों
For Private And Personal Use Only