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( ३९ )
में भी जैनशासन की प्रशंसा - अनुमोदना करने लायक कार्य करना ८, इस प्रकार ये आठ तरह का दर्शनाचार है ॥
३ ॥
पणिहाणजोगजस्तो मनोयोग, वचनयोग और काय - योग इन तीन गुणों की एकत्रता सहित पंचहिं समिईहिं तिहिं गुन्तिहिं--पांच समितियों के और तीन गुप्तियों के भेदों से
एस चरित्तायारो -- यह चारित्राचार
अविहो होइ नायव्वो । आठ प्रकार का होता है ऐसा समझना ॥ ४ ॥
बारसविहम्मि वि तवे -- बारह प्रकार के तपाचार में सभितर बाहिरे कुसलदिट्ठे-छः आभ्यन्तर और छः बाह्य भेद तीर्थङ्करोंने कहे हुए हैं ।
अगिलाइ अणाजीवी - तप में कायरता या खेद नहीं लाना और आजीविका - तप करने से मेरी उदरपूर्ति चलेगी इस आशा से रहित
तप करना
नायो सो तवायारो । -- वह तपाचार है ऐसा जानना ॥५॥ अणसणमूणोअरिआ - थोडे समय या बहुत समय तक आहार का त्याग करना १, पांच या सात
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