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ACI
(४४) तस्स खमासमणो--हे क्षमाश्रमण ! उससे पडिक्कमामि--मैं निवृत्त होता हूँ-फिर वैसा दोष न
लगने देने का निश्चय करता हूँ। निंदामि गरिहामि-आत्मसाक्षी से उस दोष की निन्दा
और गुरुसाक्षी से गर्दा करता हूँ, अप्पाणं वोसिरामि ।---और मेरी आत्मा को पापक्रियाओं
से बोसिराता हूँ-अलग करता हूँ। दूसरा वांदणा देते समय “आवस्सियाए' पद नहीं बोलना एवं रात्रिक प्रतिक्रमण में 'राइवइक्कंता,' चतुर्मासिक प्रतिक्रमण में 'चउमासि वइक्कतो,' पाक्षिक प्रतिक्रमण में 'पक्खो वइक्कतो' और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में 'संवच्छरो वइक्कतो' कहना ।
३०. देवसिअं आलोउं सुत्तं । इच्छाकारेण संदिसह भगवं!--हे भगवन् ! आपकी
- इच्छापूर्वक आज्ञा दीजिये । देवसिअं आलो-दिवस सम्बन्धी पाप की आलोचना
करने के लिये इच्छं, आलोएमि---आपकी आज्ञा प्रमाण है, मैं आलो.
चना करता हूँ, 'जो मे देवसिओ अइआरो०'--इत्यादि, यहाँ 'इच्छामि
ठामि' सूत्र का पाठ पूरा बोलना ।
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