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(२९) जैणं सुअं सव्वसुअप्पहाणं,-समस्त शास्त्रों में प्रधान- तम जैनश्रुत ( जैनागम) को वंदे सया सव्वगुणोदहिं च।-मैं सदा वन्दन करता हूँ
जो जैनागम सर्वगुणों का दरिया है ॥३॥
२२. संसारदावानलथुई। संसारदावानलदाहनीरं-संसार रूप दावानल के सन्ताप
को शान्त करने के लिये जल के समान संमोहधूलिहरणे समीरम्-मोहनीयकर्म रूप धूल को
उडाने-हठाने में वायु के समान मायारसादारणसारसीरम्-माया रूप पृथ्वी को
खोदने के लिये तीखे हल के समान नमामि वीरं गिरिसारधोरम्-और सुमेरुपर्वत के
समान अचल श्री महावीरप्रभु को नमस्कार
करता हूँ ॥१॥ भावावनामसुरदानवमानवेन-भावपूर्वक नमन करते
हुए देवेन्द्रों, दानवेन्द्रों और नरेन्द्रों के चूलाविलोलकमलावलिमालितानि ।--मुकुटों में रहे हुए
चपल कमलों की पंक्ति से सुशोभित, और संपूरिताभिनतलोकसमीहितानि-सम्यक् प्रकार से
नमे हुए लोगों के मनोवांछितों को पूर्ण करनेवाले
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