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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२९) जैणं सुअं सव्वसुअप्पहाणं,-समस्त शास्त्रों में प्रधान- तम जैनश्रुत ( जैनागम) को वंदे सया सव्वगुणोदहिं च।-मैं सदा वन्दन करता हूँ जो जैनागम सर्वगुणों का दरिया है ॥३॥ २२. संसारदावानलथुई। संसारदावानलदाहनीरं-संसार रूप दावानल के सन्ताप को शान्त करने के लिये जल के समान संमोहधूलिहरणे समीरम्-मोहनीयकर्म रूप धूल को उडाने-हठाने में वायु के समान मायारसादारणसारसीरम्-माया रूप पृथ्वी को खोदने के लिये तीखे हल के समान नमामि वीरं गिरिसारधोरम्-और सुमेरुपर्वत के समान अचल श्री महावीरप्रभु को नमस्कार करता हूँ ॥१॥ भावावनामसुरदानवमानवेन-भावपूर्वक नमन करते हुए देवेन्द्रों, दानवेन्द्रों और नरेन्द्रों के चूलाविलोलकमलावलिमालितानि ।--मुकुटों में रहे हुए चपल कमलों की पंक्ति से सुशोभित, और संपूरिताभिनतलोकसमीहितानि-सम्यक् प्रकार से नमे हुए लोगों के मनोवांछितों को पूर्ण करनेवाले For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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