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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०) कामं नमामि जिनराजपदानि तानि-जिनेन्द्रदेव के चरणकमलों को मैं अत्यन्त 'भक्ति से वन्दन करता हूँ ॥२॥ बोधागाधं सुपदपदवीनीरपूराभिराम-ज्ञान से गंभीर, सुन्दर पदों की रचना रूप जल के प्रवाह से मनोहर, जीवाहिंसाविरललहरीसंगमागाहदेहम्-जीवरक्षा रूप बिना रुकावट की तरंगों के संगम से कठि नाई से प्रवेश करने योग्य चूलावेलं गुरुगममणीसंकुलं दूरपारं-और चूलिका रूप तटवाले, बडे बडे आलावा रूप रत्नों से व्याप्त और जिसका पार नहीं आ सकता, सारं वीरागमजलनिधि सादरं साधु सेवे ।-उत्तम श्री महावीरमभु के आगमरूपी समुद्र की आदर पूर्वक अच्छी तरह से सेवा करता हूँ ॥३॥ २३. पुक्खरवरदोसुत्तं। पुक्खरवरदीवड्ढे—आधे पुष्करवर द्वीप, धायइसंडे अ जंबदीवे अ-धातकीखण्ड द्वीप और जम्बूद्वीप, इन ढाई द्वीप के भरहेरवयविदेहे-पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह, इन पन्द्रह क्षेत्रों में रहे हुए For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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