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(२८) २१. श्रीपञ्चजिनेन्द्रस्तुतिसुतं । जिणिंदरायं पढमं मुणिंद-प्रथम जिनेश्वर श्री ऋषभ
देवस्वामी, संतितहा तित्थयरं च नेमि ।--और तीर्थकर श्री शान्ति
नाथस्वामी तथा श्री नेमिनाथस्वामी, पासं जिणं सव्वगुणिप्पहाणं-सर्वगुणी जनों में मुख्य
श्री पार्श्वनाथस्वामी और नमामि देवं तिसलातणुअं।—त्रिशलानन्दन श्री महा
वीरस्वामी को नमस्कार करता हूँ ॥१॥ अणतणाणोदहिकण्णधारा,—अनन्तज्ञान रूप समुद्र के
कर्णधार ( नेता) मंगल्लमूला जिअरागदोसा । सर्वमंगलों के मूल
कारण और राग तथा द्वेष को जीतनेवाले सव्वे जिणिंदा सुरसंघपुज्जा,---देवसमूहों के पूज्य
चोवीसों जिनेन्द्र भगवान् । सिवं सया मे विअरंतु लोए । संसार में नित्य मेरे
__ कल्याण का विस्तार करें ॥२॥ अणंतविण्णाणणियाणभूअं,--अनन्त विज्ञान के
निदानभूत मिच्छत्तसम्मत्तविवेयकारिं-मिथ्यात्व और सम्यक्त्व
का विवेचन करनेवाले
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