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(२७) नेवाले और सद्गुणों के एक स्थानभूत
श्री पार्श्वनाथ प्रभु को, भत्तीह वंदे सिरिवद्धमाणं- और श्री महावीरस्वामी
प्रभु को मैं भक्ति से वन्दन करता हूँ ॥२॥ अपारसंसारसमुद्दपारं--अपार संसार रूप समुद्र के
पार को पाये हुए। पत्ता सिवं दितु सुइक्कसारं--ये जिनेन्द्र एक सार
स्वरूप मोक्ष मेरे को देखें सव्वे जिणिंदा सुरविंदवंदा,--ये सभी जिनेन्द्र देवों
के समूह से वन्दनीय एवं पूजनीय हैं कल्लाणवल्लीण विसालकंदा ।--कल्याण रूप लताओं के
विशाल गोड के समान हैं ॥२॥ निव्वाणमग्गे वरजाणकप्पं--मोक्षमार्ग में जाने के
लिए उत्तम वाहन के समान हैं पणासियासेसकुवाइदप्पं ।--समस्त कुवादियों के
अभिमान को तोड़नेबाले हैं। . मयं जणाणं सरणं वुहाणं,--जिनेश्वरों के सिद्धान्त
विद्वानों के आधारभूत हैं । नमामि निच्चं तिजगप्पहाणं । और हमेशां तीनों
जगत् में मुख्य हैं, उनको मैं वन्दन करता हूँ ॥३॥
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