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(३०) कामं नमामि जिनराजपदानि तानि-जिनेन्द्रदेव के
चरणकमलों को मैं अत्यन्त 'भक्ति से वन्दन
करता हूँ ॥२॥ बोधागाधं सुपदपदवीनीरपूराभिराम-ज्ञान से गंभीर,
सुन्दर पदों की रचना रूप जल के प्रवाह
से मनोहर, जीवाहिंसाविरललहरीसंगमागाहदेहम्-जीवरक्षा रूप
बिना रुकावट की तरंगों के संगम से कठि
नाई से प्रवेश करने योग्य चूलावेलं गुरुगममणीसंकुलं दूरपारं-और चूलिका
रूप तटवाले, बडे बडे आलावा रूप रत्नों
से व्याप्त और जिसका पार नहीं आ सकता, सारं वीरागमजलनिधि सादरं साधु सेवे ।-उत्तम
श्री महावीरमभु के आगमरूपी समुद्र की आदर पूर्वक अच्छी तरह से सेवा करता हूँ ॥३॥
२३. पुक्खरवरदोसुत्तं। पुक्खरवरदीवड्ढे—आधे पुष्करवर द्वीप, धायइसंडे अ जंबदीवे अ-धातकीखण्ड द्वीप और
जम्बूद्वीप, इन ढाई द्वीप के भरहेरवयविदेहे-पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच
महाविदेह, इन पन्द्रह क्षेत्रों में रहे हुए
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